•   Monday, 25 Aug, 2025
Angered by the Vice Chancellor s indecent language the female employee resigned and left the city fe

कुलपति की अमर्यादित भाषा से क्षुब्ध महिला कर्मचारी ने दिया इस्तीफा किसी अनहोनी घटना की आशंका से शहर छोड़ा

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  Varanasi ki aawaz

कुलपति की अमर्यादित भाषा से क्षुब्ध महिला कर्मचारी ने दिया इस्तीफा किसी अनहोनी घटना की आशंका से शहर छोड़ा


वाराणसी:-पद की गरिमा भाषा की मर्यादा के साथ जुड़ी होती है। मर्यादा विहीन भाषा पद और संस्थान दोनो की छवि को नुक़सान पहुंचाते है। 
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो आनंद कुमार त्यागी ने कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है।

खुद के चहेते के लिए महिला कर्मचारी को ही अपमानित कर दिया।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की महिला कर्मचारी शिखा बसंल ने कुलपति द्वारा उन्हें अपने ही कार्यालय में बुलाकर अनुचित भाषा के प्रयोग किए जाने से क्षुब्ध होकर इस्तीफा दे दिया है। इतना ही नहीं किसी अनहोनी की आंशका से महिला शहर छोड़कर चली गई है। वरिष्ठ सहायक (सामान्य प्रशासन) पद पर कार्यरत शिखा बंसल ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि बीते 19अगस्त को कुलपति ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाया जहां कुलपति ने अनुचित भाषा का प्रयोग किया।

दरअसल, इस पूरे विवाद की जड़ पत्रकारिता विभाग के अतिथि अध्यापक डॉ रमेश सिंह से जुड़ा हुआ है। बताते चले कि अतिथि अध्यापकों की नियुक्ति एक साल के लिए होती है। इसके बाद पुनः नये सिरे से अध्यापकों की नियुक्ति की जाती है।

बीते 11अगस्त को पत्रकारिता विभाग में अतिथि अध्यापकों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार हुआ है। साक्षात्कार में डॉ रमेश सिंह भी शामिल थे। साक्षात्कार का परिणाम अभी आया भी नहीं है इसी बीच रमेश सिंह बीते 19अगस्त को प्रशासनिक भवन जा धमके और खुद की नियुक्ति की बात कहते हुए वरिष्ठ सहायक शिखा बंसल से नियुक्ति का आदेश देने की बात कही।

महिला कर्मचारी के ये कहने पर कि पूरी प्रक्रिया गोपनीय होती है और नियुक्ति का आदेश रजिस्ट्रार के माध्यम से विभागाध्यक्ष को भेजा जाता है, रमेश सिंह ने आपे से बाहर होकर शिखा बंसल को भला-बुरा कहा।

इसी बात को लेकर कुलपति प्रो. आनंद त्यागी ने भी शिखा बंसल को अपने कक्ष में बुलाकर उनके प्रति अनुचित भाषा का प्रयोग किया। घटना से आहत शिखा बंसल ने उसी दिन इस्तीफा दे डाला। बाद में वो शहर छोड़कर चली गई। 
बताते चलें कि शिखा बंसल के पति प्रोफेसर शरद बसंल विद्यापीठ में ही प्रोफेसर थे।

गौर करने की बात यह है कि बीते 11 अगस्त को अतिथि अध्यापक के लिए हुए साक्षात्कार में 17 लोग शामिल हुए थे, इनमें से केवल रमेश सिंह ने ही प्रशासनिक भवन पहुंचकर अपनी नियुक्ति का दावा करते हुए नियुक्ति का आदेश पत्र किस अधिकार के तहत मांगा?

प्रोक्टोरियल बोर्ड में कैसे आ गए रमेश सिंह

अतिथि अध्यापक पद पर नियुक्ति के परिणाम आने से पहले ही प्रोक्टोरियल बोर्ड में बतौर सदस्य रमेश सिंह की नियुक्ति भी सवाल खड़ा करती है। बीते 2 जुलाई को विद्यापीठ द्वारा जारी प्रोक्टोरियल बोर्ड के सदस्य के बतौर रमेश सिंह शामिल किए गए है। जबकि अतिथि अध्यापक के लिए साक्षात्कार बीते 11 अगस्त को हुआ है। 
इस बारे में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता वैभव त्रिपाठी और कुलपति प्रो आनंद कुमार त्यागी के बीच हुई बातचीत में कुलपति महोदय इस सवाल पर गोलमोल जवाब देते नजर आए।

सूत्रों की मानें तो रमेश सिंह कुलपति के चहेते है। इसी का लाभ वो लेते रहते है। लोग इसलिए भी उनके कारगुजारियों पर खामोश है कि उनपर मुसीबत न आए। नाम न सामने आने के शर्त पर लोग कहते है कि अपने संबंधों का लाभ उठाकर वो लोगो को धमकाते हैं।

महिला कर्मचारी को कैसे मिलेगा न्याय?

महिला कर्मचारी शिखा बसंल का इस्तीफा भले ही स्वीकार नहीं किया गया है लेकिन पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश जारी है। कुलपति पर अनुचित भाषा का प्रयोग किए जाने के अपमान से क्षुब्ध होकर इस्तीफा देने वाली शिखा बंसल शायद आने वाले हालातों से वाकिफ थी इसलिए वो इस्तीफा देने के फौरन बाद शहर ही छोड़कर चली गई। सवाल यह भी है कि जब उच्च शिक्षण संस्थाओं में बैठे बौद्धिक लोगों के बीच कार्यरत महिला के साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा हो तो बाकी जगहों वो कितनी सुरक्षित है इसे समझना मुश्किल नहीं है।

रिपोर्ट- युवराज जायसवाल, वाराणसी
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